मरने के बाद ही लड़ने वाले के प्रति सबसे ज़्यादा सहानुभूति दिखाते हैं लोग, रोहित वेमुला हो या डॉ पायल तड़वी
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नई दिल्ली (New Delhi)। अक्सर यह देखा जाता है कि लोग मरने के बाद ही लड़ने वाले के प्रति सबसे ज़्यादा सहानुभूति दिखाते हैं लेकिन वह जब संघर्ष कर रहा होता है तो उसका साथ न के बराबर लोग देते हैं। रोहित वेमुला (Rohit Vemula) जब हैदराबाद यूनिवर्सिटी से निकाला गया और यूनिवर्सिटी के बाहर रहने पर मजबूर हुआ तो उसके समर्थन में लोग नहीं आये और जैसे ही उसके मरने की खबर लगी तो लोग उसके नाम पर अपना नाम चमकाने के लिए जगह जगह मंच लगाये सैकड़ों आर्टिकल, व किताब लिखे। उसके बाद डॉ पायल तड़वी (Dr. Payal Tadvi)। बात तो सबसे सोचने वाली बात यह हे की इसमें सबसे ज़्यादा समाज के पढ़े लिखे लोग शामिल थे।
आज जब सामाजिक न्याय की आवाज़ उठाने वाली Dr. ऋतू सिंह (Ritu Singh) संघर्ष कर रही हैं तो बहुजन समाज को उनके न्याय के लिए साथ आना चाहिए। दिल्ली विश्वविद्यालय में शिक्षको के हक़ के लिए जितनी भी रैलियों वहाँ Dr. Ritu लगभग उनको संघर्ष करते हुए देखा गया है।
बहुजन समाज में बहुत कम लड़कियां हैं जो कि सामाजिक न्याय की लड़ाई में मैदान में आती हैं बहुत ही नायाब लोगों में से Dr.Ritu भी एक हैं। लाकडाउन के बाद व नये सत्र की अहुफ 6 होने पर जहाँ दिल्ली विश्वविद्यालय के तमाम Ad-Hoc साथियों को Joining Latter मिल गया है तो वही Dr. Ritu को इस लाभ से वंचित रखा गया! हमारे समाज में अभी वर्तमान में बहुत ज्यादा अत्यचार बढ़ रहे है। जिसका एक ही कारण समाज में संगठन नहीं है।
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Rohit Vemula And Dr. Payal Tadvi (File Photo) |
नई दिल्ली (New Delhi)। अक्सर यह देखा जाता है कि लोग मरने के बाद ही लड़ने वाले के प्रति सबसे ज़्यादा सहानुभूति दिखाते हैं लेकिन वह जब संघर्ष कर रहा होता है तो उसका साथ न के बराबर लोग देते हैं। रोहित वेमुला (Rohit Vemula) जब हैदराबाद यूनिवर्सिटी से निकाला गया और यूनिवर्सिटी के बाहर रहने पर मजबूर हुआ तो उसके समर्थन में लोग नहीं आये और जैसे ही उसके मरने की खबर लगी तो लोग उसके नाम पर अपना नाम चमकाने के लिए जगह जगह मंच लगाये सैकड़ों आर्टिकल, व किताब लिखे। उसके बाद डॉ पायल तड़वी (Dr. Payal Tadvi)। बात तो सबसे सोचने वाली बात यह हे की इसमें सबसे ज़्यादा समाज के पढ़े लिखे लोग शामिल थे।
आज जब सामाजिक न्याय की आवाज़ उठाने वाली Dr. ऋतू सिंह (Ritu Singh) संघर्ष कर रही हैं तो बहुजन समाज को उनके न्याय के लिए साथ आना चाहिए। दिल्ली विश्वविद्यालय में शिक्षको के हक़ के लिए जितनी भी रैलियों वहाँ Dr. Ritu लगभग उनको संघर्ष करते हुए देखा गया है।
बहुजन समाज में बहुत कम लड़कियां हैं जो कि सामाजिक न्याय की लड़ाई में मैदान में आती हैं बहुत ही नायाब लोगों में से Dr.Ritu भी एक हैं। लाकडाउन के बाद व नये सत्र की अहुफ 6 होने पर जहाँ दिल्ली विश्वविद्यालय के तमाम Ad-Hoc साथियों को Joining Latter मिल गया है तो वही Dr. Ritu को इस लाभ से वंचित रखा गया! हमारे समाज में अभी वर्तमान में बहुत ज्यादा अत्यचार बढ़ रहे है। जिसका एक ही कारण समाज में संगठन नहीं है।
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